बचपन
बचपन के वो सारे सपने अब बस ख़्वाब से लगते हैं,
जिम्मेदारियों के आगे अब वो सारे सपने सिर्फ एक असाध्य से लगते हैं।
पाने को सफलता मिटा दी हमने सारी अभिलाषाएँ अपनी,
पर अब मिल भी जाए मंज़िल तो वोे कौनसा खास लगते हैं।
बचपन के वो सारे सपने अब बस ख़्वाब से लगते हैं।।
© ऋषिकेश कुमार
जिम्मेदारियों के आगे अब वो सारे सपने सिर्फ एक असाध्य से लगते हैं।
पाने को सफलता मिटा दी हमने सारी अभिलाषाएँ अपनी,
पर अब मिल भी जाए मंज़िल तो वोे कौनसा खास लगते हैं।
बचपन के वो सारे सपने अब बस ख़्वाब से लगते हैं।।
© ऋषिकेश कुमार