कविता- बुलंद है हौसलें।।
तू कदम से कदम बढ़ा।
रुक मत फासलें कम हो जाने से।।
तू तो सागर है।
फिर क्यों रुकता है,इनकी बौछारों-से।।
तू डर मत।
किसीके डराने से।।
तुझे तो आसियाना बनाना है।
फिर क्यों ढील दे रखी अपने बुलंद अरमानों को।।
बेरुखी ज़बान है, इनकी ।
तू टूट मत इनकी बातों से।।
माना मुश्किल है सफर ।
पर तू तो मजबूत है, इन चट्टानों-से।।
तू तो एक प्रबल...
रुक मत फासलें कम हो जाने से।।
तू तो सागर है।
फिर क्यों रुकता है,इनकी बौछारों-से।।
तू डर मत।
किसीके डराने से।।
तुझे तो आसियाना बनाना है।
फिर क्यों ढील दे रखी अपने बुलंद अरमानों को।।
बेरुखी ज़बान है, इनकी ।
तू टूट मत इनकी बातों से।।
माना मुश्किल है सफर ।
पर तू तो मजबूत है, इन चट्टानों-से।।
तू तो एक प्रबल...