Tulsi ka nanha paudha
देखा मैंने खीडकी से आज
एक नन्हा तुलसी का पौधा
करता है जद्दोजहद वहां
बारिश की बूंदों से उलझा
है अड़ा हुआ जीद में अपनी
माने ना हार किसी भी बार
बूंदें आती फिर टकराती
पौधा फिर से सीधा होता
मुस्कुरा रहा वो बार बार
मन ही में कहता जाता
सुन लो बारिश की ऐ बूंदों
तोड दो मेरी टहनी तुम
पर तोड ना पाओ धैर्य मेरा
क्यूं उढ उढ कर मैं खड़ा रहा...
एक नन्हा तुलसी का पौधा
करता है जद्दोजहद वहां
बारिश की बूंदों से उलझा
है अड़ा हुआ जीद में अपनी
माने ना हार किसी भी बार
बूंदें आती फिर टकराती
पौधा फिर से सीधा होता
मुस्कुरा रहा वो बार बार
मन ही में कहता जाता
सुन लो बारिश की ऐ बूंदों
तोड दो मेरी टहनी तुम
पर तोड ना पाओ धैर्य मेरा
क्यूं उढ उढ कर मैं खड़ा रहा...