क्षणिका
चक्षु खोलूं तो
तुम ओझल हो जाते ,
चक्षु बंध करूं तो
तुम प्रगट हो जाते
ये कैसा स्वप्निल दृश्य ?
हृदय से विपरित
रक्त से शिथिल
एहसास से बढ़कर ,
क्षणभर श्वास में मिलें..!!
© -© Shekhar Kharadi
तिथि- १७/५/२०२२, मई
क्षणिका हिंदी साहित्य की मूल्यवान विधा है ।...
तुम ओझल हो जाते ,
चक्षु बंध करूं तो
तुम प्रगट हो जाते
ये कैसा स्वप्निल दृश्य ?
हृदय से विपरित
रक्त से शिथिल
एहसास से बढ़कर ,
क्षणभर श्वास में मिलें..!!
© -© Shekhar Kharadi
तिथि- १७/५/२०२२, मई
क्षणिका हिंदी साहित्य की मूल्यवान विधा है ।...