तकलीफ़ सज़ा बन जाती है।
तकलीफ़ सज़ा बन जाती है,
कोई सुनने वाला ना हो तो,
तकलीफ़ सज़ा बन जाती है,
जब इंसान खुदको अकेला मेहसूस करे तो।
तकलीफ़ सज़ा बन जाती है,
सब्र करना ना आता हो,
तकलीफ़ इंसान को चुप करा देती है,
वो भी इतना चुप किसी के होने या ना होने से
फर्क़ नहीं पड़ता है।
© SHezo_Writes
कोई सुनने वाला ना हो तो,
तकलीफ़ सज़ा बन जाती है,
जब इंसान खुदको अकेला मेहसूस करे तो।
तकलीफ़ सज़ा बन जाती है,
सब्र करना ना आता हो,
तकलीफ़ इंसान को चुप करा देती है,
वो भी इतना चुप किसी के होने या ना होने से
फर्क़ नहीं पड़ता है।
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