...

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“ शाम सुहावनी माँ ”
सुरमई सी आंखें गुलाबी आंचल ओढ़े लगती शाम सुहावनी माँ,
कदमों की तेज़ चमक धूल में धूमिल होती रंग ज़मीं कि धानी माँ,,

क़्या बख़ान तेरे प्यार का असल में इसे ही कहते प्यार रूहानी माँ,
गालियां मार डांट सब सुनाती फिर भी ठहरी लब पे चाशनी माँ,,

हाथों की महकार ऐसी महसूस करूं तो सारी भूख मिट जाएं,
निंदों में सिलवटें पड़ जाती, सपनों में भी न लगती अंजानी माँ,,

किस क़दर बयां करूं हर अल्फ़ाज़, मेरे रूबरू बैठ, ऐन बोलती,
कभी वक़्त की मेहरबां में लिख दूं मां-बेटी की पूरी कहानी माँ,,

ज़ज़्बातों के सैलाब मौन सी बहती तुफां एक नाम सरिता में ‘सिरमौर’ ,
कभी रूकूं सिरा पे कभी बह जाऊं तुममें न कोई तुमसा सानी माँ,,

© अलिशायरा🦋

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