...

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तुम्हारी महफ़िल में…
क्या आज भी सजती है महफ़िल तुम्हारी
क्या आज भी याद आती है तुम्हें हमारी
एक अर्सा बीत गया जिस बात को वो
क्या आज भी ज़रूरी सी लगती है सारी!!

क़लम से काग़ज़ पर उतारे हैं ये जज़्बात
ये उम्मीद से कभी पढ़ो तुम इन्हें दिन-रात
कल का क्या पता कल किसने देखा है
बस हमारे बाद आबाद रहें हमारे नग़्मात!!

क्या बताएँ के किस दर्द में जकड़े बैठे हैं
नहीं चाहते लौटकर आना सो यहीं डटें हैं
उन पल उन लम्हों का कोई हिसाब है क्या
आज वही ज़ख़्म फिर तुमने जो उधेड़े हैं!!

बना था तुम्हारा बदला बदला मिजाज़ भी
उसी पल चला गया चले जाने का राज़ भी
ना करना अब कभी ढूँढने की कोशिश हमें
कि मरा नहीं जो एहसास ज़िंदा है आज भी,
तुम्हारी महफ़िल में
तुम्हारी महफ़िल में…!!
© witty.writer