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ना पूछिए...
अब गुजर रही है कैसी, याँ हमारी ना पूछिए
उस माहजबीन से मेरी यारी ना पूछिए..
कब शाम ढली ,रात कब, फ़िर कब सहर हुई
उनके सोहबत में रतजगे की खुमारी ना पूछिए..
पूछें हैं लोग मुझसे के क्या मर्ज है, कहो
कह देता हूँ रहने दें, अब बीमारी ना पूछिए..
खुद में रहे हूँ, मस्त - मगन, चुपचाप, सुकूं में
वो करते हैं पागलों में अब शुमारी ना पूछिए..
© Rajnish Ranjan
उस माहजबीन से मेरी यारी ना पूछिए..
कब शाम ढली ,रात कब, फ़िर कब सहर हुई
उनके सोहबत में रतजगे की खुमारी ना पूछिए..
पूछें हैं लोग मुझसे के क्या मर्ज है, कहो
कह देता हूँ रहने दें, अब बीमारी ना पूछिए..
खुद में रहे हूँ, मस्त - मगन, चुपचाप, सुकूं में
वो करते हैं पागलों में अब शुमारी ना पूछिए..
© Rajnish Ranjan
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