...

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नशा

छा गया था नशा मुझे उसका
हर रोज की तरह हर सुबह शाम
ना मिलती गर वो तो मन मेरा
खाली सा बेचैन सा रहता
बैठे बैठे इंतज़ार में उसके
जाने शाम कब गुजर जाती थी
मन को ताज़ा कर जाती थी
कभी कभी तो उसमे डूब
जाने की भी इच्छा सी होती थी
आखिर नशा ही इतना गहरा था उसका।
© anu singh