...

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!जख्म दिलों के!
दर्द गर सामने से दिए होते तो दर्द नहीं होता,,
पर यहां तो पीठ पीछे ही हमें घायल कर गए!!

नजरें उठाकर देखना चाहा अपने गुनहगारों को,,
एक कतार में खड़े अपने ही दिख गए!!

जख्म इतने गहरे थे कि भरने से भी ना भरे,,
पर फिर भी वक्त हमें इन्हीं जख्मों के साथ जीना सिखा गए!!

सब की बेवफाई ने हमें इस कदर तोड़ दिया,,
कि "जख्म दिलों के" दिल में समेत के रह गए!!

प्यार, आदर, सम्मान का क्या खूब तोहफा दिया,,
जिंदगी भर किसी पर भरोसा ना करने का इशारा दे गए!!

आंखों की नमी आंखों तक ही सीमित रह गई,
इस सीने में धड़कते दिल को पत्थर बना गए!!

दिल के हर दर्द को चेहरे पर ना आने दिया,,
चल पड़े एक नए राह पे जहां अजनबी मिल गए!!


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