...

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नौकरी
सोचा था नौकरी लगने पर हर शौक पूरा करेंगे।
बेवजह घूमने निकल जाया करेंगे
ये पहनेंगे वो पहनेंगे ना जाने क्या-क्या खाएंगे।
इससे मिलेंगे उससे मिलेंगे बेवजह मुस्कुराएंगे।
मगर कौन जानता था कि यहीं नौकरी, खा जाएगी सब ख्वाहिशें।
अब याद नहीं कब कपड़ों पर इस्त्री की थी।
कब बैठकर तसल्ली से खाना खाया था।
याद नहीं कब निकले थे बिना काम के घर से बाजार को।
कब बतियाने बैठे थे उनसे जिनसे हर गम बेपर्दा था।
सोचा था नौकरी लगने.....
पर अब तो ये भी याद नहीं कितना वक्त गुजरा नौकरी लगने पर 😭
सोचा था नौकरी लगने पर खरीद लाऊंगा सबके लिए खुशियां।
मगर अब तो उनके दु:ख का भी मुझको पता नहीं।
हंसने की बात तो बहुत दूर हैं मैंने अपने लिए सोचा कब था ये भी याद नहीं।
सोचा था नौकरी लगने पर.....
© Nikhil jain