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उधार का शरीर
परमात्मा ने हमें अपनी एक बेशकीमती चीज दी है ,वो क्या है आपलोग जानते हो वो है हमारी शरीर और उसमे एक नश्वर आत्मा जिसका अंत केवल उपर वाले के हाथों में है।
हम तो बस उसके कठपुतली हैं जो वो चाहता है वही होता है फिर वो सूर्य का उदय हो या तारों का चमकना सब उसके अनुरूप।
फिर भी हम मानव अपने इस उधार के शरीर और आत्मा की संतुष्टि के लिए दूसरों की आत्मा को ठेस पहुंचाते हैं। कभी किसी जानवर को या कभी किसी अपने ही तरह नश्वर आत्मा को।
हमारा उद्देश्य तो केवल ये होना चाहिए की हम इस शरीर और आत्मा को श्रेष्ठ कैसे बनाये बिना किसी को हानि पहुंचाए ताकि जब परमात्मा हमसे वापस ये शरीर और आत्मा ले तो हमें गुनाहगार नहीं समझा जाए। जैसे आए थे अकेले वैसे ही इस दुनिया से जाना है। ना हमारा कुछ था यहां और ना कभी होगा। फिर अहंकार किस बात का ; दिखावा किस बात का सब तो परमात्मा का है और हम उसे अपना समझ कर अहं में रहते हैं।
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अरे! मानव आंखें खोलो,
देखो सवेरा आया है।
ऊपर से सब देख रहा रब,
लाल गगन भी छाया है।

क्या लेकर जाएगा तू ;
खाली हाथ ही आया है।
अपनी ना सोच सिर्फ,
मतलबी बड़ा पछताया है।

दूसरों को ना दुख दे;
रब से डर ; यही गुन सबने गाया है।
कर भला लोगों का,
इससे तेरा भी भला हो पाया है।


अरे! मानव आंखें खोलो,
देखो सवेरा आया है।
ऊपर से सब देख रहा रब,
लाल गगन भी छाया है।
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आशा करती हूँ मेरी लेखनी आपलोगों को पसंद आएगी।
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