...

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दिल के अल्फाज
इतना पास आ के भला, अब ये झिझकना कैसा ?
साथ निकले हैं तो फिर, राह में थकना कैसा ?

मेरे आँगन को भी ख़ुश्बू का, कोई झोंका दे
सूने जंगल में ये फूलों का, महकना कैसा ?

रौशनी दी है तो, सूरज की तरह दे मुझको
जुगनू की तरह थोड़ा सा, चमकना कैसा ?

मेरी पलकें, मेरा आँचल, मेरा तकिया छू लो
आँसुओ, इस तरह आँखों में, खटकना कैसा ?

हम तो दुनिया के, ख़यालात बदल देते थे
गुफ़्तगू करने में उनसे, ये अटकना कैसा ?

ख़ुश्क आँखें तो हैं, हिम्मत की अलामत "निकहत"
ज़िंदगी तल्ख़ सही, फिर भी सिसकना कैसा ?


#chaurasiya4386
@rahul chaurasiya
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