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वाडव
केवल प्रतिशोध शांत कर पाया है कुपित विप्र को
अन्यथा कौन रोक पाया कराल मृत्यु वेग क्षिप्र को

अगठित शिखा पर्याय बनी विध्वंस की सदा
दम्भी शासन के बिखरे है तब अंश ही सदा

शस्त्रों का ज्ञाता होता है और कुशल नीतिज्ञ भी
सदा अवहेलना होती रही है ब्राह्मण ब्रह्म विज्ञ की

स्वाभिमान ही केवल एक जो संपदा भूदेव की अर्जित है
चाटुकारिता और पद प्रक्षालन विप्र हित तो वर्जित है



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