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प्रेम क्या है
प्रेम क्या है,,,,

दो लोग कभी एक जैसे नहीं होते हैं
जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार कर लेना
बदलने की खींचातानी में या तो तुम टूटोगे
या फिर वो,,,,
और प्रेम में कब कोई एक दूसरे के अनुरूप
ढलता चला गया पता ही नहीं चलेगा
जरूरत है सब्र की प्रतीक्षा की
प्रेम है तो प्रतीक्षा भी होगी
लेकिन महज़ आकर्षण है
तो खुद ही खत्म हो जाएगा
प्रेम की आड़ में दिल बहलाना या
फिर कुछ समय के लिए
अपने खालीपन को भरना,,,, उचित नहीं है
लेकिन अधिकतर यही सब होता है
प्रेम की इमारत में घुसना
हर कोई चाहता है लेकिन इस
भूल भुलैया में भूल जाते हैं
सही और ग़लत का भेद
कैसे रास्ते को तय करना है
ये बहुत कम लोग समझ पाते हैं,,संयम,
मर्यादा, धैर्य से जो चलता रहा हौले हौले
निश्चित रूप से उसने पाया है प्रेम को
जिया है प्रेम को,,,
प्रेम मन की साधना है और
अपने प्रिय की आराधना है!
Namita Chauhan
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