...

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वक़्त की लकीरें
वक़्त की कलम चलती रही
चेहरे पर लकीरें खिंचती रही
कुदरत के इस करिश्मे से बेखबर
मोह माया और रिश्तों के बंधन में
मैं बंधती रही,उलझती रही
वक़्त का पहिया घूमता रहा
मै भी साथ साथ चलती रही
फिर लगा ज़िन्दगी ढलान पर है
चलते चलते कदम थकने लगे
कुछ पल को जब आईना देखा
हैरान रह गई जब चेहरा देखा
वक़्त की कलम ने अपनी लकीरें दे कर
बदल ही डाली चेहरे की शक्ल
पढ़ न सकी मैं वक़्त की भाषा
हाँ,लगता है ये चेहरे की लकीरें
अब बन गई हैं ठहराव की सूचक।