...

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झुट से ही सही
अस्तीत्व की पहचान करते
बरसो बीत गये...
अपने दील को झुट से ही सही
पर सम्भालते चले गये ।।१।।

डूब गई ओ सारी बाते जो
घंटो आखो मे सजाया करते थे
कभी रात दीन उनपे मरते थे
खोई उन बातो को आज
बडा याद करते है...
अपने दील को झुट से ही
सही पर सम्भालते चले गये ।।२।।

दीखावे की हसी भी डरती है
आज हमारे पास आने से
खुद की परछाई भी नजर ना आये ।
येसा हाल बन चुका है मेरा
कीसे बताये ये बेफीजुल की बाते
कभी हुआ करती थी
उन परछाईयो से मुलाकाते ।।३।।

जींदगी अधेरा तो बन चुकी थी
तभी और आज भी
तकदीर साथ नही ओ
हमारी-तुम्हारी सादगी
कहु तो "खंडहर"ना कहु तो "समंदर"
याद तुम्हारी इस कदर आती है
आज परछाई भी डराती है
पर फीर भी जेसे-तेसे
अपने दील को झुट से ही
सही पर सम्भालते
चले आ रहे है ।।४।।