...

6 views

काल दिन
सदमे ने दस्तक दिया ही की,ज्ञात हुआ,वो प्यार का याम था
कहीं जग में बढ़ रहा था,प्रेम,कहीं लोगों को काम बहुत था
आखिर वो अंक से गुजरी घड़ी,जब कई नेत्रों से पानी बहा
जेहरली नस्लो के कारण,वो जो थे,चले गए,पूरे जहाने कहा

जन्नत मिलेगी करके ये दुष्कर्म,वो सुनकर हुआ एक तैयार
उस वक्त की लगी ऐसी,हवा की,जैसे जेहन में लगी हो बयार
हस रहे थे कुछ,कुछ गाते हुए,आगे बढ़ा रहे थे, साथ सफर
जो दुनिया को दहला दिया,कुचल दिया, एक फूल का भवर

हमले तो अपने करते थे,यह तो घेरो का बिछाया जाल था
ना वो चाहकर,या हार हराकर,ये छल का बनाया काल था
चालीस हुए थे वीर गति को प्राप्त,देश डूब चुका था शोक में
कहीं उजड़े, देह गए,उनके अपने,आंसू भी ना थे,होश में

वो नन्हो का बाप,जो सिर्फ वतन का पहरेदार का तिंखा था
अरे मारने के खातिर,जो मर गया था,पता चला किनका था
जिसकी वृद्ध हुई थी मां,कमजोर कंधे वाला हुआ था बाप
आज घमंड अगर है करकर,देखो एक दिन चूबेगा यह पाप

आज भी वो छत टपकता है,पर उसे बनाने वाला अब नरहा
तुम बिलक्कर क्यों रोते हो,वो वीर था,गर्व करो सबने कहा
लोग वक्त कहते है,में कहते हूं,हालत हसाती,कहीं रुलाती है
वक्त का क्या?पात्र हूं,तो मिलेगा,वरना बहुतों को बुलाती है

यह एक दिनों का ज़ख्म नहीं,इसकी घेहरापन सालों का है
जब जीवन को कहते,दया,उपकार करो,कहती और सेह
अब अगला पीढ़ी का हकदार,पर कायम उम्मीदों का भोज
आज कल देखकर,सुंग गया ,बढ़े चलो,कल का भलखोज

ADITYA PANDEY©