...

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क्यूँ ?
जब मरना था तो जन्मां ही क्यूँ
जब रिश्ते छूटने थे तो जुड़े ही क्यूँ
जब रुकना था तो चला ही क्यूँ
जब कर्मों से छूटना था तो किये ही क्यूँ
जब शरीर मिटना था तो बना ही क्यूँ
जब जागना ही था तो सोया ही क्यूँ
घर लौटना ही था तो घर से गया ही क्यूँ
जीवन पाना था तो मरा ही क्यूँ
पैसा छोड़कर जाना था तो कमाया ही क्यूँ
पेट ख़ाली करना था तो भरा ही क्यूँ
जब झगड़ा बन्द करना था तो किया ही क्यूँ
जब सूरज निकलना था तो डूबा ही क्यूँ
जब सबको बिछड़ना है तो मिले ही क्यूँ

ये मेरा ‘ क्यूँ ‘ पड़ने बालों को बेवजह लगेगा
पर क्यूँ के बीच में बीते वक़्त ने ही सारे
दुख दर्द झमेले खड़े किये इसी ने भ्रमण कराया …
सोच कर देखो सोचने की बात है
क्यों गोल गोल घूमे जा रहे हो