स्मृतियों का घर हो।
रहने दो घर का एक कोना खाली ही,
घर के एक कोने में स्मृतियों का घर हो।
खुले आसमां तले निहारे चांद सितारे,
मांगे बस एक वर कि कोई न बेघर हो।
जब लगे प्यास मन को, मन रहे सजीव,
एक कोने में घर के मीठे जल की गागर हो।
जब लगे डराने तम दिवसों के काले साये,
ओढ़ सकें, यादों की एक झीनी सी चादर हो।
© Prashant Dixit
घर के एक कोने में स्मृतियों का घर हो।
खुले आसमां तले निहारे चांद सितारे,
मांगे बस एक वर कि कोई न बेघर हो।
जब लगे प्यास मन को, मन रहे सजीव,
एक कोने में घर के मीठे जल की गागर हो।
जब लगे डराने तम दिवसों के काले साये,
ओढ़ सकें, यादों की एक झीनी सी चादर हो।
© Prashant Dixit