...

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दिल की बात
क्या सुनना है..तुम्हें..?
मेरी दास्तां-ऐ-दिल..!
बड़े बेताब हो
क्या है मेरे दिल में ये जानने को..?
समझते सब हो
मगर रजामंद नहीं मानने को..!!
रूठने मनाने का हक़
यूँ ही तो नहीं दिया तुम्हें..!!
परत दर परत खुलते जा रहे
औऱ कितना जानोगे हमें..!!
तुम ख़ुद भी तो खामोश हो
राज दिल के खोलते नहीं..!!
हमसे उम्मीद रखते हो इज़हार की
अपने लबों से कुछ बोलते नहीं..!!
जानता हूँ हया का लिवाज ओढ़े हो
फिर फितरत से भी बड़े भोले हो..!!
औऱ मैं भी तो उसूलों से बंधा हूँ
खुद अपने आपसे सधा हूँ..!!
जितने आतुर तुम हो जानने को इस दिल में क्या है..!!
शायद उतना ही व्याकुल मैं भी हूँ तुम्हारे दिल में क्या है..!!
डर तुम्हें भी है...