...

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अनचाहे मंजिले
ज़िंदगी की इन अनचाही मंज़लों का लुत्फ़ लेने निकला था वो
राह चलते मुसाफिर बनके
किसे के साथ के भरोसे ना बैठा था वो कभी
लेकिन उसे क्या पता था कि
नियति को कुछ और ही मंज़ूर था
उसके आने से वो कभी कभी खुश हो जाया करता था
लेकिन ये अगर ऐसे ही बना रहता तो क्या बात ही होती जनाब
बिखर सा गया था वो कुछ पल भर में ही
अनचाहे मंजिले ही तो होती हैं जो ज़िन्दगी जीने का असल मज़ा देती है ।

© Harsh