...

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हिम कणों की यात्रा
सिकुड़ कर ठोस बन जाते हैँ
जब जल के कण,
आसमां उनका बोझ
ना सह पाता हैँ,
ना रोकता कोई उन्हें
जहाँ पे बने थे,
बेबस हो कर ही धरा
पे आते हैँ |

कह के अलविदा नीले फलक को
बादलों को देखते करुण नैन से
एक आस की निगाह से देखते सभी को
काश थाम लेता कोई गिरने से |

ना दिखती कोई उम्मीद जब
थामे जाने की
लें के विदा बादलों से
मंजिल की ओर बढ़ जाते हैँ |

जा टकराते कुछ हिम कण
पर्वतों से
सफर खत्म होता साथियों
से बिछड़ जाते हैँ

कुछ तो आ लटकते पेड़ो
की शाखाओं से
कुछ सुखी जमीं पे आ के
टूट जाते हैँ

समा जाते हिम कण
गहरे समुन्द्र में
कुछ जा नदी नालों में
गिर जाते हैँ

एक साथ निकले थे सफर पे
टूट कर के सब अलग हो जाते हैँ ||
© shweta Singh