...

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दिल का मोल
बेधड़क हो कर शामिल हुआ जनाजे में उसके
जिस से इजहार ए इश्क़ करने में वो कतराता था ।

सूनी पत्थर सी बन गई आख़िरी पल में वो आंखें
जिनमें कभी आशाओं का समंदर लहराता था ।

दिल का मोल लगाया उसने कौड़ियों के भाव
नज़रों में कभी जो उसकी अनमोल होता था ।

एक पल हुई गलती दूजे पल मौसम बदल गया
कभी न बदलने का देखो जो वादा करता था ।

आज़ादी मिली उड़ने की तो निशाने पर आ गए
कितना अच्छा था जब हुस्न परदे में रहता था ।

© Geeta Dhulia