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बहनों अब शस्त्र उठाओ
ना विचार नेक है, ना मन स्वच्छ है
जो सदा अराजकता के पक्ष रहे
क्या उनमे थोड़ी भी मानवता ना बची
जो मासूम बेटियों को भी ना बक्श रहे

गली-मोहल्ले हैं देते गवाही
कि,सही है जो हमारे नेत्र नहीं
खुले घूमते सब जगह दरिंदे
सुरक्षित कोई भी क्षेत्र नहीं

जो अच्छे से चलना भी ना सीखी
जो घर में लाती मीठी किलकारी
जो बुनती मां-बाप की उम्मीदो को
ऐ निर्लज्ज! उन्ही पर गंदी नजर है तुम्हारी

लड़कियों की इज्जत जो उछालते
जिन्हें खुद अपनों से प्यार नहीं
सूली की भी रस्सिया कम पड़ जाए
यह नर्क के भी हकदार नहीं

शाम ढलती फिर नया मामला आता
अब मासूमों का जीना आसान नहीं
मगर, मै भी निडर हूँ मरते दम तक सच्चाई लिखूंगा
क्योकि मेरी कलम किसी की गुलाम नहीं

रख दो अहिंसा को कोने में अब
बहनो! शस्त्र उठाना ही बाकी है
कोई भी साथ ना देने आएगा
जब खुद बिक गई वर्दी खाकी है

               © Navin Gautam
  [Author and Employee at Bharat
  Multi Care (Ayurveda), Faridabad,  
  Hariyana, 121003]