...

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Safar...
अपने गमों से अब बेज़ार नहीं हु मैं.
तेरी अजमाइशो से अब परेशान नहीं हु मै..

अपनी तमाम ख्वाइशों को कुर्बान कर दिया है मैंने...
शायद अब तेरी नजरों मे गुनाहगार नहीं हु मैं..!


सिख लिया है हालातों से जीने का सलीखा हमने,
यहां तक आकर हार जाऊं इतना लाचार तो नहीं हु मै..

मुझे भी हक़ हैं अपनी मंज़िल को पाने का यहां..
हुनर रखता हू अपने फन का कोई गवार नही हु मै...

अधूरा सफ़र इंसान को हमेशा अधूरा रखता हैं,
मुकम्मल भी ना हों पाऊं कोई झूठा वादा तो नहीं हूं मैं..

जितनी बार गिरा हु उतना ही मुक्कमल होता गया हु मैं,
कभी पूरा भी ना हों पाऊं अधूरा ख़्वाब तो नहीं हूं मैं...

© सूफ़ी लफ्ज़