ज़िंदगी..
अभी ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं...
रात का अँधेरा अब तंग नहीं करता
दिन का उजाला कभी आड़े नहीं आता
देर से सोना छोड़ दिया है
जल्दी उठना सीख लिया है
माँ की अब परेशानी नहीं रहा
पापा की ज़िम्मेदारी नहीं रहा
लोगों के ताने तो अब सुनाई नहीं देते
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
कुछ क़रीबी लोग खो रहा हूँ
अकेले में अब थोड़ा कम रो रहा हूँ
उम्मीद तो ख़ैर करनी छोड़ दी है
मन लगाना भी भूल गया हूँ
वक़्त के भी पीछे नहीं जा रहा
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
किस्मत को अब कम कोसने लगा हूँ
रास्तों पर अकेले ही चल रहा हूँ
कल का डर तो अब रहा नहीं
आज भी थोड़ा कम जी रहा हूँ
गैरों का क्या कहूँ
अपनों से भी अब पराया हो गया हूँ मैं
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
© punk
रात का अँधेरा अब तंग नहीं करता
दिन का उजाला कभी आड़े नहीं आता
देर से सोना छोड़ दिया है
जल्दी उठना सीख लिया है
माँ की अब परेशानी नहीं रहा
पापा की ज़िम्मेदारी नहीं रहा
लोगों के ताने तो अब सुनाई नहीं देते
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
कुछ क़रीबी लोग खो रहा हूँ
अकेले में अब थोड़ा कम रो रहा हूँ
उम्मीद तो ख़ैर करनी छोड़ दी है
मन लगाना भी भूल गया हूँ
वक़्त के भी पीछे नहीं जा रहा
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
किस्मत को अब कम कोसने लगा हूँ
रास्तों पर अकेले ही चल रहा हूँ
कल का डर तो अब रहा नहीं
आज भी थोड़ा कम जी रहा हूँ
गैरों का क्या कहूँ
अपनों से भी अब पराया हो गया हूँ मैं
शायद
अब ज़िंदगी जीने लग गया हूँ मैं |
© punk