न जाने क्यों...
दिल न जाने क्यों घबरा रहा है,
जैसे खुद से ही कुछ छुपा रहा है।
छा जाता है चेहरे के सामने कुछ अंधेरा सा ,
जैसे कोइ अपना मुझे सता रहा है।
न जाने कैसी खमोशी है यादो में,
न जाने कैसी सरोशी है सासों में ।
जैसे जागते हुए नीदों को कोई सुला रहा है,
और सोते हुए ख्वाबो को कोई जगा रहा है।
दिल न जाने क्यों घबरा रहा है,
जैसे खुद से ही कुछ छुपा रहा है।
अन्दर ही अन्दर...
जैसे खुद से ही कुछ छुपा रहा है।
छा जाता है चेहरे के सामने कुछ अंधेरा सा ,
जैसे कोइ अपना मुझे सता रहा है।
न जाने कैसी खमोशी है यादो में,
न जाने कैसी सरोशी है सासों में ।
जैसे जागते हुए नीदों को कोई सुला रहा है,
और सोते हुए ख्वाबो को कोई जगा रहा है।
दिल न जाने क्यों घबरा रहा है,
जैसे खुद से ही कुछ छुपा रहा है।
अन्दर ही अन्दर...