...

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जंग
जंग जैसे अल्फाज़ केवल अल्फाज़ नहीं होते,
ये कई जहां का मंज़र समेटे होते हैं,
कई ख़्वाब दफ़न होते है इनमें,
कई हमराज गुम होते हैं उसमे,
जंग केवल अल्फाज़ नहीं होते।।

गूंजती चीखों का मंजर होते हैं,
लुटती बचपन का सबब होते हैं,
दौर-ए -जवानी जो चढ़ती नहीं हैं,
एक कातिल होता है और हजारों कत्ल -ए -आम होते हैं,
जंग जैसे अल्फाज़ केवल अल्फाज़ नहीं होते।।