...

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आंखों की बेबसी
कब कोई इन आंखों की बेबसी को समझेगा
इंतेज़ार करती आंखों में इस नमी को समझेगा

कोई तो होगा जो ले जाएगा अंधेरे से बाहर मुझे
होगा नेक बंदा जो रौशनी से मिली ख़ुशी को समझेगा

चंद सांसों के हैं जो मेहमान इस मतलबी दुनिया में
जो जानता होगा मौत का दर्द वो ज़िंदगी को समझेगा

कोई यहां सुनना ही नहीं चाहता है गरीबों की आवाज़
होगा जो दिल का अमीर वो किसी की ख़ामोशी को समझेगा

अब तो पत्थरों से दोस्ती कर ली है मैंने ऐ "हिना"
तन्हाई में भी होती है तक़्लीफ वो बेरुखी को समझेगा
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