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अपना -पराया



अपने पराए का भेद मन में रखना बेकार है सुन
कहने को अपने भी ज़रूरत में हैं आँखें फेर लेते

उम्मीद भी नहीं होती है जहाँ मदद मिलने की
अनजान भी मुसीबत में बिन बोले सहारा बनते

न मिलते हों किसी से तुम्हारे ख़्याल गर,तो क्या
नफ़रत की नींव मत रखना मतभेदों के चलते

कौन अपना, कौन पराया है हम पर भी है निर्भर
हमारा व्यवहार देखकर भी लोग मन हैं बदलते

सच है, दगाबाजों की भी कमी नहीं दुनिया में
ज़िंदगी के सच्चे पाठ भी इन्हीं से हमको मिलते

मत घबरा किसका क्या है मकसद साथ आने में
वक़्त जब हो मेहरबाँ, चेहरों से छुपे नकाब हटते


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© संवेदना
#कुछ_नया_कुछ_पुराना