...

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दो चिड़ियाँ
सोने के पिंजरे में थी सुंदर चिड़िया प्यारी । वन की चिड़िया फुदक रही

डाली-डाली सारी ॥

मिलन हुआ जब दोनों का यों आपस में बतियाई ।

पूछा वन के पच्छ मे तव "क्यों पिंजरे में आई?"

पिंजरे की चिड़िया बोली,

'आओ तुम भी भोतरा 44 बात करेंगे हम तुम दोनों, आज जरा जी भरकर !

खाएँगे मिल अनार के दाने गटकेंगे मीठा पानी । फिर झूल-झूल तुम झूले पर कहना अपनी कहानी । "

वन की चिड़िया बोली 'उससे, "बंधन मुझे न भाए। मैं स्वतंत्र, निर्बंध, मुक्त हूँ आश्रय मेघों के साए ।

हो उदास पिंजरे की चिड़िया मन-ही-मन में रोती । 'गाती गुन-गुन गीत मुक्ति के जो मैं बाहर होती!'

पिंजरे की चिड़िया पिंजरे में

वन का पंछी वन में।
समझे वही मोल मुक्ति का रहता जो बंधन में।