...

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महाभारत का वह युग दोहराया जाएगा।
ये नापाक गिद्ध सी आंखे
मेरे लिबास को अपने ज़ेहन में चीरे जा रहीं हे,
ये कमजर्फ वासना में रिप्त दरिंदे,
अपनी आंखो से मेरे वस्त्र हरण कर रहें हे,
न कर्म का ज्ञान का धर्म का भय हे,
लगता हे फिरसे...