एक परिंदा जो मासूम सा था।
एक परिंदा जो मासूम सा था,
कर रहा था अठखेलियां।
नादान सा वो रहा था समझ ज़िन्दगी के पहेलियां।
एक परिंदा जो मासूम सा था,
गिर रहा संभल रहा बांध रहा वो पलों सा था,
फिर आया वो मोड़ उस पल, जब उसने ढाई आखर लिखा सा था।
क्या पता था उसको की होगा वो मशगूल इतना, की मिट...
कर रहा था अठखेलियां।
नादान सा वो रहा था समझ ज़िन्दगी के पहेलियां।
एक परिंदा जो मासूम सा था,
गिर रहा संभल रहा बांध रहा वो पलों सा था,
फिर आया वो मोड़ उस पल, जब उसने ढाई आखर लिखा सा था।
क्या पता था उसको की होगा वो मशगूल इतना, की मिट...