आधुनिकता के शिकार
ना कोई ठौर ना ठिकाना, ना ही घर द्वार है,
किसी काम के नहीं हम, ना कोई रोज़गार है।
मोबाईल ही अब ज़िन्दगी, मोबाईल ही संसार है,
कैसे कह दें हम, हुए आधुनिकता के शिकार हैं।
रहते हैं जमीन पर, बात करते हैं आसमानी,
बालों को डाई करते, हाथों से फिसलती जवानी।
हक़ीक़त नगण्य, पर दिखावा अपना बेशुमार है,
कैसे कह दें हम, हुए आधुनिकता के शिकार हैं।
हम कुछ नहीं जानते, सच्चाई भी नहीं मानते,
अपनी औकात को हम, किंचित ही पहचानते।
होंठों पर राम का नाम, पर मन में व्यभिचार है,
कैसे कह दें हम, हुए...
किसी काम के नहीं हम, ना कोई रोज़गार है।
मोबाईल ही अब ज़िन्दगी, मोबाईल ही संसार है,
कैसे कह दें हम, हुए आधुनिकता के शिकार हैं।
रहते हैं जमीन पर, बात करते हैं आसमानी,
बालों को डाई करते, हाथों से फिसलती जवानी।
हक़ीक़त नगण्य, पर दिखावा अपना बेशुमार है,
कैसे कह दें हम, हुए आधुनिकता के शिकार हैं।
हम कुछ नहीं जानते, सच्चाई भी नहीं मानते,
अपनी औकात को हम, किंचित ही पहचानते।
होंठों पर राम का नाम, पर मन में व्यभिचार है,
कैसे कह दें हम, हुए...