...

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मैं आब-ओ-ताब हूं सहरा की,,
मैं आब-ओ-ताब हूं सहरा की
मुझे धुप की सोहबत भाती हैं

मैं विरान किसी जंगल सा हूं
एक कोयल मुझमें गाती है

मैं सरमाया हूं अंधेरों का
कई रातें मुझमें समाती हैं

हैं जन्नत मुझमें जहन्नुम सी
जो रोती हुई मुस्कुराती हैं

मेरे बिस्तर कोरे नहीं रहते
मेरी शय्या छलनी हो जाती हैं

मैं आब-ओ-ताब हूं सहरा की
मुझे धुप की सोहबत भाती हैं

मैं फिर जोर जोर से रोता हूं
मुझे बेवफ़ाई इतना हंसाती है

मैं दरख़्त हूं कोई कब्र पर लगा
मेरी छाया मुझको डराती हैं

कुछ नज़र नहीं आता मुझको
मेरी सोच गहरी हो जाती हैं

जब रूप धरूं मैं तुफां का
कोई फ़सल सामने आ जाती हैं

मैं आब-ओ-ताब हूं सहरा की
मुझे धुप की सोहबत भाती हैं

© charansahab

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