...

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कौन हूं मैं..!!!
कौन हूं मैं क्या वजूद है मेरा, जानने की किसे लगी है,
नहीं हूं जो किसे पता, जो हूं उसकी भी किसे पड़ी है।

होश हूं, बेहोश हूं खुद में, फिक्र नहीं अब कोई है,
जैसी भी हूं, हां में ही हूं, हरसतें अब कई कई हैं।

लिखावट में शोर, बोलियों से कमजोर, देह है मेरी,
भर भर के मन का लिखने को, ज़िन्दगी पड़ी है।

सर्दियों में गर्म, गर्म में सर्द सी, रूत शायद नई है,
सुलझाने को आप को ही, उलझने भरी हुई हैं।

लिख लिख कर तोड़ देने को, कलम अब भी,
भर कर रखी...