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कोरोना गीत

सूरज ना बदला चांद ना बदला ना बदला आसमान।
पर कितना बदल गया यह जहान?
उड़ते खग है देखो कैसे अपने पंख पसारे।
रात में चंदा तारे भी ऊपर से हमे निहारे।पर मानव हो गया है इनसे बिल्कुल अंजान।
किसी सोचा ना था कि यह दिन भी आएगे
एक विषाणु से डर कर घर मे मुंह छिपाएंगे।
इसके कारण बना अमेरिका इटली कब्रिस्तान।
सबकी हालत है एक है जैसी कोई नही अछूता।
बैठे है घर के अंदर सब टूटा सबका बूता।
सारी हेकड़ी हवा हो गई बिखरा सब अभिमान
मानव अब हो गया 'अकेला' इसका तो आभास हुआ।
'चार दिनो की चाॅदनी ' इसका अब एहसास हुआ।
ऑखे अब खुल चुकी और मिला परम तत्व का ज्ञान।
अरूण 'अकेला'