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गाँव और मैं
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हम खुशनसीब हैं कि हमने वो दौर भी देखा
कच्चे घरों को दीयों से रोशन होते देखा
और घर के चूल्हे दूसरों की आँच से सुलगते देखे
सिर्फ़ पगड़डियों से गुजरते राहगीरों को देखा
कुंओं से प्यास बुझते और रिश्तों में रस देखा
पोष माह की रातों में ठिठुरता हर घर देखा
जेठ माह में हर देय से बहता समुद्र देखा
किसी को नीम पीपल की छाँव में देखा
तो किसी को नींद में बिजना झलते देखा
दिल से सबको और मर्यादा में अमीर देखा
पर्दो में से झांकते सुंदर मुखडे़ देखे
कहीं गीत कहीं रुदन,वो भी लय में देखा
चाँद तारों और सूरज से चलते घर के समय को देखा
कहीं दूर चौपाल पे जीवन के तजुर्बे को साझा होते देखा
मत पूछो अब मेरी मिट्टी की कहानी,जिसे मैंने मिट्टी होते देखा।