...

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चंद लम्हे ज़िंदगी के ,,,
चंद लम्हे ज़िंदगी के मैं यूं काट लेता हूं,
कि गम ए तन्हाई मैं खुद से बांट लेता हूं,

फकत पत्थर ही मिले हैं मुझको समंदर से,
अहल-ए-हुनर हूं पानी में मोती छांट लेता हूं,

मगर उखड़ा सा रहता हूं इन दिनों खुदी से मैं,
मेरी कागज़ कलम से मैं बेबाक उचाट लेता हूं,

हूं दिल-ए-नादाँ कहां मुझे पहचान दुनिया की,
कहूं क्या किसी से बस खुदी को डांट लेता हूं,

और यूं तो शजर काटे हैं ताउम्र जिन्दगी में मैने,
शरीक-ए-सफ़र से राहों में कलियां बांट लेता हूं,

फिर जानना कैफ़ियत-ए-हयात लाज़िम है रकीब,
मो'जिज़-ए-फ़न का मैं ज़िंदगी से इस्बात लेता हूं,

मिले हमसफर कोई मेरी मंजिल को मुकां कर दे,
राह में बाइ'स-ए-आफ़ात को हाथों हाथ लेता हूं,

बुलंद मयार हूं वाफिर मगर इतना भी नही अ प्रदीप,
गर मिले रत्ती भर मुझे रब से रिदा में ज़कात लेता हूं,

मालूम पड़ता है दौर-ए-हयात में मुकां ए जिंदगी अब,
कर नेकी मुफलिसों से सफर में आब-ए-हयात लेता हूं,


© #mr_unique😔😔😔👎