...

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"मैं तुमको निहारूं"
आत्मा से मैं तुमको निहारूं,
निशदिन ख्वाबों में मैं पुकारूं।
तुम आ जाओ स्वप्न सजा दो,
राहें पलकों से मैं संवारुं।।

तुमसे मैं आलिंगन कर के,
अधरों को अधरों पे धर के।
रहें अचेत अवस्था दोनों,
रात मिलन की यूं मैं गुजारूं।

तुम हो परी अप्सरा कोई,
जगती आंखें लगती सोई।
मुखड़ा लगे चांद के जैसा,
खुद से तुम्हारी नजर उतारूं।।

निर्मल, शीतल, कोमल, काया,
कामदेव सा रूप समाया।
तुम्हें लगा कर हल्दी, चंदन,
थोड़ा सा मैं तुम्हें निखारुं।।