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इश्क़ अधुरा है
#PerspectivePlay
इश्क़ अधुरा है तुम बिन समझ क्यों नहीं पाते हो ।
अपने प्यार को लाकर मुझमें क्यों नहीं मिला पाते हो ॥
पगडंडियां पकड़ पकड़कर कभी इश्क़ नहीं होता है ।
अपने हीं हाथों लिखी कहानी क्यों नहीं मिटा पाते हो ॥
जो बोया है अब तक तुमने वहीं काटा भी है अब ।
झुककर बहुत जी लिए शान से क्यों नहीं जी पाते हो ॥
चेहरे का दाग इतनी जल्दी नहीं जाता है साहब ।
जो दाग लग जाए उसे क्यों नहीं मिटा पाते हो ॥
पथरीला पथ जरूर है जिंदगी का मगर कहते हैं ।
दिल में जूनून है तो किसी का दिल क्यों नहीं चुरा पाते हो ॥
© ✍️ विश्वकर्मा जी
इश्क़ अधुरा है तुम बिन समझ क्यों नहीं पाते हो ।
अपने प्यार को लाकर मुझमें क्यों नहीं मिला पाते हो ॥
पगडंडियां पकड़ पकड़कर कभी इश्क़ नहीं होता है ।
अपने हीं हाथों लिखी कहानी क्यों नहीं मिटा पाते हो ॥
जो बोया है अब तक तुमने वहीं काटा भी है अब ।
झुककर बहुत जी लिए शान से क्यों नहीं जी पाते हो ॥
चेहरे का दाग इतनी जल्दी नहीं जाता है साहब ।
जो दाग लग जाए उसे क्यों नहीं मिटा पाते हो ॥
पथरीला पथ जरूर है जिंदगी का मगर कहते हैं ।
दिल में जूनून है तो किसी का दिल क्यों नहीं चुरा पाते हो ॥
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