...

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मेघ आए बड़े बन ठन के
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली,
दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके । मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
'बरस बाद सुधि लीन्हीं' -
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के ।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।

क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
'क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की',
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके ।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।