...

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मेरे मन की बात
मेरा दिल बहुत कुछ कहता है
मगर मैं खामोश रहती हूं।
मेरा मन बहुत कुछ कहना चाहता है
मगर लबों से मैं कुछ ना कहती हूं
मैं अब खामोश रहती हूं।
सब टूट चुके हैं।
अब इन आंखों में कोई सपना नहीं है
सब अपने हैं फिर भी कोई अपना नहीं है
अपने आप से ही रूठ गई हूं मैं
लोगों की बातों से टूट गई हूं मैं
अपनी ही दुनिया में मदहोश रहती हूं
मैं अब खामोश रहती हूं।
ना मैं हूं किसी की ना कोई मेरा
मेरे चारों तरफ है बस गहरा अंधेरा।
मेरे साथी हे मेरे आंसू
और तनहाई मेरा साया है
अब हाल में ही मुझे जीना आया है
धीरे-धीरे अब होश में खो रही हूं
मैं खामोश रहती हूं
हां बिल्कुल खामोश रहती हूं।