...

4 views

एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में मैं हर तरफ हर जगह हूं।।
यह एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त है,
यह गाथा काभी पूर्ण नहीं होगी,
क्योंकि यह गाथा अमर,
इसलिए जो इस में चली वो अमरणिका,
जो अनन्त संग चली वो अन्नतिका,
कृष्ण संग चली वो कृष्णनिका,
मोहन संग चली तो मोहनिका,
हरि संग चली तो हरणनिका,
कैसव संग चली केशवी,
मोहन संग चली तो मोहनिका या मोहिनी,
वीर संग चली तो वीरभद्रा,
कृष्णानंद संग चली तो कृष्णान्नधी,
किशोर संग चली तो किशोरी,
गोविंद संग चली तो गोविंदी,

मैं ही धरा हूं,
मैं ही गगन हूं,
मैं ही राधा,
मैं ही लक्ष्मी,
मैं ही महाशक्ति हूं,
मैं कृष्णदायनी,
मैं शिव अराधिका,
मैं श्रृष्टि के रचनाकार की आसीमता हूं,
मैं सृजनिका की आसीमता हूं,
मैं जन्मिका हूं -मा
मैं प्रेमिका हूं -प्रिया-प्रियत्म,
मैं नदी बहकर सागर रचती,

मैं ही वेशया श्रापिका,
मैं ही किन्नर श्रपिका,
मैं जीवनदायिनी,
मैं ही जीवनदंडिका,
इसलिए मेरी छाया हर तरफ -हर जगह हूं।।
🖕💋🧟👄💀🐄👅....
मै दंणडी की दंणिका हूं।।
मैं ही बैकुनडी रीढ़ा,
मैं ही किन्नर कल्याणवी मूर्ति,
मैं ही डायन बनकर प्रयलयात्मक विध्वंश हूं।।
और वो सिमटती सेयाही बनकर और मरते -मरते एक स्तंभ रच जाती है।।
मेरी डोली नहीं बोली लगती है,
मेरी रचना में मैंने खुद कुछ ना रचा।
मैं सर्वप्रथम सर्वोपरि होकर भी -
शून्य कहलाई।।
मैं सरवसत्र होकर भी नहीं।।
मेरे पंख है पर उड़ान नहीं।।
मैं जिसकी हूं उसी का अधिपतिका हूं।
मेरी खुद की रचना पर मेरा अधिपति नहीं,
मैं सबकी हुई जग मां,
हर रूप मां,
मगर काऊनू नाही होऊ मेरा,
मेरे रूप एक नहीं,
ना परिभाषा एक है,
अगर समझो किस्मत की लकीर तो वरदान हूं,
मगर अगर समझो अवशकता तो अनेक रूपों में भी मेरा वास ही कहलाता है।।

#प्रलयात्मकविधवंश।।
© All Rights Reserved