...

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शायद
मेरी सिखाई हुई मोहब्बत की हलाकत कर के
मेरे दस्त-ए-रस से बाहर गए तुम्हें ज़माने गुज़रे

शायद एक दिन तुम शोहरत की कर्बनाक शिद्दत से तंग आ कर
रुजू तो करोगे मगर वक़्त तुम्हारा मोहताज न होगा

शायद तुम्हारा रुख़्सार शिकन की सलवटों से घिरा होगा
शायद तुम्हारा मुर्दा ज़मीर चंद आख़िरी सांसें ले रहा होगा

शायद उन सांसों के दरमियान के वक़्फ़े में तुम्हें
मेरी पाकीज़ा मोहब्बत से की गई गुस्ताख़ियों पर पछतावा भी हो

शायद तुम्हारे ज़मीर की चंद सांसों को
मेरी बाअफ़ा साबित क़दम फ़रीफ़्ता यक तरफ़ा मोहब्बत ने ज़िंदा रखा हो

शायद तुम्हें गुज़री हुई हर वो लबरेज़ यादें सताने लगें
जिनको तुम बेज़ार हो के कोसा करते थे

शायद तुम लौटना चाहोगे शोहरत के मैदान को सरे आम छोड़ कर
शायद तुम्हारा अध मरा ज़मीर तुम्हें इजाज़त न दे

शायद तुम एक पल को सोचोगे
क्या तुम पूछे गए हर सवाल का जवाब दे पाओगे?
क्या तुम्हारे लफ़्ज़ों में इतनी ताक़त होगी
जो तुम्हारे गुनाहों की तारीख़ को माफ़ कर सके?

शायद तुम अपने ज़मीर से ये भी न पूछ पाओ
कि मेरी हर ख़ामोशी में एक जहां बस रहा था
जिसे तुम पल भर की शोहरत के लिये मीलों दूर छोड़ आए

शायद तुम इतना हौसला कर लो
कि अपने...