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#नीतिमत्ता #शांति #जीवनकेमायने
अक्सर सुबह की शांति से,
शाम की शांति से बेहद जूदा है ।

निरवता सुबह को सँवारती,
शाम की चुपकीदी बड़ी अखरती ।

सुबह में मौन मुखर जाता,
तो शाम का बहुत ही अकड़ जाता ।

समज-समज का यह फेर है,
कुछ कम, तो कुछ ज्यादा ही समज लेता ।

पल-पल बदलते रिश्तों का यह दौर है,
कुटिल मन स्वार्थरत बुनियाद गढता रहता ।

आज की खुशी, सुख की गारंटी नहीं,
क्षण-क्षण..सुख दूःख की परिभाषा बदलती जाती ।

सँभलना तो हर हाल में है, यारों !
फिसलन,धोखाधड़ी,लडखडाना जो पग-पग पर हैं।

जमाने का दस्तूर बस ! यही है,
सभी को आगे ही आगे बढना अनिवार्य है।

कहीं किसी को गिराकर यहीं,
कहीं लूंट खसोटकर या फरेबी बनकर ही सही ।

हारना तो सिर्फ मानवता को है,
या मूल्यों, नीतियों, नैतिकता-शिष्टाचार को ही है ।।


© Bharat Tadvi