फितरत
अजीब है
फ़िलहाल ,
जहाज-ए-दस्तूर
कहा समझ पाया हूं मैं...,
इंसानी फितरत की नियत
यहां हर शब्द में खोट है
यहां हर सोच में मिलावट है ,
यहां हर सच में दिखावा है
क्योंकि.. जिंदगी तो बस..!
इमोशनल ब्लेकमैल प्लेग्राउंड
नोट-वोट-रोंग विथ गेम से चलती
वहां शक्ल से सीरत कहा ?
वहां नस्ल से संस्कार कहा ?
वहां वस्ल से समानता कहा ?
जहां पग-पग पर लोग....
चोट पहुंचाने की फ़िराक में बैठे हैं
वहां गिरगिट की तरह हर रोज
रंग-ढंग-शौक मुस्तैदी से...
फ़िलहाल ,
जहाज-ए-दस्तूर
कहा समझ पाया हूं मैं...,
इंसानी फितरत की नियत
यहां हर शब्द में खोट है
यहां हर सोच में मिलावट है ,
यहां हर सच में दिखावा है
क्योंकि.. जिंदगी तो बस..!
इमोशनल ब्लेकमैल प्लेग्राउंड
नोट-वोट-रोंग विथ गेम से चलती
वहां शक्ल से सीरत कहा ?
वहां नस्ल से संस्कार कहा ?
वहां वस्ल से समानता कहा ?
जहां पग-पग पर लोग....
चोट पहुंचाने की फ़िराक में बैठे हैं
वहां गिरगिट की तरह हर रोज
रंग-ढंग-शौक मुस्तैदी से...