...

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निभा रहे हैं फर्ज़ों को.!
टूट कर बिखर गया कोई इतनी सी बात पर,
दोस्ती में क्या जाना, यारों किसी की जात पर,
साथ दिया मुसीबत में और प्यार बन रहा है।
•निभा रहे हैं फर्ज़ों को और किरदार बन रहा है।।
बादलों से बरसी बारिश हवा कितनी देर रोक लगी।
जितनी मर्जी बरसे मगर धरती सब सोख लगी,
बीज अंकुरित होकर धरती का सिंगर बन रहा है।
•निभा रहे हैं फर्ज़ों को और किरदार बन रहा है।।
जितना बताया उतना ही तो कोई हल करना सोचेगा,
फिर बताओ आज नहीं तो कल करना सोचेगा,
उसका तुम पर तेरा उस पर अधिकार बन रहा है।
•निभा रहे हैं फर्ज़ों को और किरदार बन रहा है।।
© Dharminder Dhiman