अकेलापन-का-दर्द
न मिली मोहोब्बत तो जल्दी ही मर जायेंगे,
न पूरी हुई ये हसरत तो जल्दी ही मर जायेंगे।
इतनी भारी उदासी की गठरी नही उठाई जाती,
न हुई अगर ये ख़ाली तो जल्दी ही मर जाएंगे।
तप रहे क़दम मुसलसल दर्द की इस तपन से,
अगर गई न धूप ये तो जल्दी ही मर जायेंगे।
वो तो चला गया यूँ मुझको बे-हाल छोड़कर,
और यूँहीं रहे बेहाल तो जल्दी ही मर जायेंगे।
हर दिन हर पल हर रात ही ज़ख़्म रुलाते हैं,
न हुई किसी से बात तो जल्दी ही मर जायेंगे।
दर्द रुकता नही
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न पूरी हुई ये हसरत तो जल्दी ही मर जायेंगे।
इतनी भारी उदासी की गठरी नही उठाई जाती,
न हुई अगर ये ख़ाली तो जल्दी ही मर जाएंगे।
तप रहे क़दम मुसलसल दर्द की इस तपन से,
अगर गई न धूप ये तो जल्दी ही मर जायेंगे।
वो तो चला गया यूँ मुझको बे-हाल छोड़कर,
और यूँहीं रहे बेहाल तो जल्दी ही मर जायेंगे।
हर दिन हर पल हर रात ही ज़ख़्म रुलाते हैं,
न हुई किसी से बात तो जल्दी ही मर जायेंगे।
दर्द रुकता नही
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